सुपरिचित विचारवान कवयित्री कल्पना कौशिक की दो कविताएँ

1.
आत्मा कट गई दर्द है पीर है।
भाव कुचले गए हाल गम्भीर है।
किस तरह से बचाएं सुकूं जिन्दगी
हाथ में सबके ही आज शमशीर है।
बाग में बागवां से कली डर रही
हर तरह है तेजाबी हवा चल रही
कृष्ण कैसे बचाएं यहाँ अस्मिता
हर कदम लुट रहा द्रौपदी चीर है।।

आस के दीप से देहरी जल रही
रुह को चाँद की चाँदनी छल रही
दूध आँचल में चाहे भले हो न हो
आज आँखों में सबके भरा नीर है।

सोचकर अब कोई बोलता ही नहीं
अपने शब्दों को अब तौलता ही नहीं
भाव व्यवहार अब सारे बौने हुए
दिल को जख्मी करें अब वचन तीर है

2.
नाकाम इरादों को नहीं मिलती है मंजिल
मंजिल पानी है तो हिम्मत को जगा देखो।

हर राख की ढेरी में चिंगारी छिपी होती
गर आग जलानी है शोलों को हवा दे दो।

बादल बनकर छाना मुश्किल भी नहीं होता
बस प्यासी धरती को कुछ सुकूं समाँ दे दो।

इस दिल के समंदर में तूफान बहुत से हंै
हो पार कोई कश्ती उसे आबो जहाँ दे दो।

आँखों के आँसू से धूमिल जिनकी राहें
गम दूर करो उनके थोड़ी मुस्काँ दे दो।

कुम्हलाएगा जीवन बंद चाहरदीवारी में
पर खोल उड़ें उनको ये सारा जहाँ दे दो।

केवल बातों से ही यहाँ काम नहीं चलता
गर टीस मिटानी है जख्मों को दवा दे दो।

News Reporter

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