गीत
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दसों दिशा में आग लगी,
देख न पानी जल जाए।
घुट-घुटकर किरदार मरें,
और कहानी जल जाए।।
सूरज की मारक लपटें, दिन को आज डराती हैं,
सागर को उसकी लहरें हरदम आँख दिखाती हैं,
ताक न ऐसे भोर मुई,
शाम सुहानी जल जाए।
घुट-घुटकर किरदार मरें,
और कहानी जल जाए।।
तीखे दाँतों के घर में जीभ सहमकर बैठी है,
आँगन में है शोर बहुत, शांति दुबककर बैठी है,
दिशाहीन युग घेर न यूँ,
कहीं जवानी जल जाए।
घुट-घुटकर किरदार मरें,
और कहानी जल जाए।।
झूठों के षड्यंत्रों में सच पर भारी संकट है,
चालाकी से रोज़ नई, भोलेपन की खटपट है,
थोथी चाहों में न कहीं,
प्रेम-निशानी जल जाए।
घुट-घुटकर किरदार मरें,
और कहानी जल जाए।।
-चेतन आनंद