आज का दौर भगदड़ वाली पत्रकारिता का दौर-राम बहादुर राय
गाजियाबाद। ‘‘आज ‘भगदड़ वाली पत्रकारिता’ का दौर है। जिसमें जीवन मूल्य नहीं हैं। सभी अपनी-अपनी जान बचाने की जुगत में दिखते हैं। शांत चित्त पत्रकारिता हो, पत्रकारिता पुनः पटरी पर आए, इसके लिए जरूरी प्रयास करने होंगे। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस जैसे नियंत्रण की आवश्यकता है।’’ वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पद्मश्री राम बहादुर राय ने यह बात कही। वह प्रभाष परम्परा न्यास एवं मेवाड़ विश्वविद्यालय द्वारा ‘आजादी के बाद की पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन विचार संगोष्ठी में अपने विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता में नीति और नियमन की जरूरत है। भगदड़ वाली पत्रकारिता रुकनी चाहिए। अगर नियमन स्थापित होता है तो प्रतिभावान एवं ईमानदार नई पीढ़ी के पत्रकारों को एक नई दिशा मिलेगी। उनमें सामाजिक सरोकारों की समझ पैदा होगी। उन्होंने कहा कि हम सभी मिलकर इसके लिए आवाज़ उठाएं। अब स्वनियमन से काम चलने वाला नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने बतौर मुख्य वक्ता आजादी के बाद की पत्रकारिता पर विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि कैसे हिन्दी पत्रकारिता को अंग्रेजी पत्रकारिता का गुलाम बनाने की साजिश पूर्व सरकारों ने रची। कैसे पुराने समाचार पत्र बारी-बारी बंद होते चले गये और उनकी जगह अनुवादक अखबारों ने ले ली। उन्होंने आज की पत्रकारिता में भी आमूल-चूल परिवर्तन करने की सलाह दी और कहा कि समाचार पत्रों पर मुनाफा, बाजार, टीआरपी जैसी चीजें हावी नहीं होनी चाहिएं। सत्य सरोकारों को स्थान ज्यादा मिलना चाहिए। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने कार्यक्रम अध्यक्ष की हैसियत से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आज के दौर में तकनीक और मुद्रण व्यवस्था उन्नत हुई है। पूंजीपतियों के हस्तक्षेप से पत्रकारिता में भ्रष्टाचार शुरू हुआ। सनसनीखेज खबरों से आम जनमानस में मीडिया की विश्वसनीयता घटी है। आजकल विज्ञापनों की पत्रकारिता हावी है। सोशल मीडिया भी अब पत्रकारिता का हिस्सा बन गया है, ऐसे में आवश्यकता है कि पत्रकार सामाजिक सरोकारों को अधिक से अधिक स्थान दें। विचार संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन, चेतन आंनद, धर्मवीर शर्मा समेत मेवाड़ परिवार के सभी सदस्य ऑनलाइन मौजूद रहे।