कविता/अध्यापक से गुरुत्व का सफ़र

पढ़ना, पढ़ाना एवं सीखना
हर अध्यापक का पेशा होता है।
जो अध्यापक ईमानदारी से काम करता है,
वह अच्छा अध्यापक होता है।
जो अध्यापक यह काम सिर्फ
पैसा कमाने के लिए करता है,
जिसका इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि
विद्यार्थी सीखा या नहीं।
वह सिर्फ ट्यूटर होता है।
जो अध्यापक पढ़ाने से जी चुराता है
वह अध्यापक नहीं सिर्फ कर्मचारी होता है।
जो अध्यापक पढ़ने, पढ़ाने एवं सिखाने के साथ-साथ-
अपने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता है,
उन्हें आगे बढ़ने के लिये उत्साहित करता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसर होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी का मार्गदर्शक,
मित्र एवं दिशा-निर्देशक बनता है,
पग-पग पर उसकी चिन्ता करता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को बड़ी शान्ति से सुनता है,
उसके मन के करीब पहुँचकर उसकी सोच बदल देता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी में,
अपने कुल, समाज, राष्ट्र एवं
राष्ट्रीय महापुरुषों के प्रति सम्मान एवं स्वाभिमान भर देता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को
समाज के प्रति संवेदनशील,
राष्ट्र के प्रति देशभक्त एवं
सरकार के प्रति सजग एवं
ज़िम्मेदार नागरिक बना देता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को
अपनी विषयवस्तु में निपुण बनाकर
उस विद्या में पारंगत बना देता है,
वह अध्यापक गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को आत्मनिर्भरता,
आत्मसम्मान एवं ज़माने की व्यावहारिकता का
पाठ पढ़ा देता है,
वह अध्यापक गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को जाति-पांति,
भेदभाव, गरीबी-अमीरी, ऊंच-नीच,
वर्ण व्यवस्था, रीति-रिवाज,
रुढ़िवादिता से ऊपर उठकर
एक स्वतंत्र सोच का व्यक्तित्व बना देता है,
वह अध्यापक गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी को
अपने बच्चों की तरह प्यार करता है,
उन्हें अपने बच्चों के रूप में अपना लेता है,
उनको लेकर अपने मन में,
स्वाभिमान एवं लज्जा का भाव
पैदा कर लेता है,
वह गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थी के मन में
देश-प्रेम एवं समाजसेवा की
ऐसी लौ लगा देता है कि
वह उत्तरोतर आगे बढ़ती जाती है,
वह अध्यापक गुरु बनने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपने विद्यार्थियों के मन में-
स्वाभाविक रूप से काम, क्रोध, मद,
लोभ, मोह आदि विकारों को
नियंत्रित कर दे,
वह अध्यापक गुरु होने की ओर अग्रसित होता है।
जो अध्यापक अपना सर्वस्व लुटाकर
अपने विद्यार्थियों को,
हँसता, खेलता, फलता-फूलता और
आगे बढ़ता देखकर खुश होता है,
वह अध्यापक गुरु होने की ओर अग्रसित होता है।
व्यक्ति से अध्यापक एवं अध्यापक से गुरु बनना
एक सतत् प्रक्रिया है,
बड़ा कँटीला एवं फिसलन भरा मार्ग है,
कुछ ही भाग्यशील पुण्य आत्माएँ इस पर चल पाती हैं,
पर जो इस दुर्गम पथ पर चल जाते हैं,
वे इस धरती पर साक्षात्
ईश्वर का रूप बन जाते हैं।
इसलिये भगवान कृष्ण ने गीता में कहा भी है-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥

 

-डाॅ. अशोक कुमार गदिया
चेयरपर्सन, मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस

News Reporter

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *