सुपरिचित ग़ज़लकारा डाॅ. सुमन ‘सुरभि’ की दो सदाबहार ग़ज़लें

1मुहब्बत नाम है जिसका वो अहसासों का बंधन है
कभी कान्हाँ की मुरली है, कभी राधा का नर्तन है ।

मुहब्बत तो इबादत है दिलों को चैन देती है
कभी फूलों की खुशबू है, कभी माथे का चंदन है ।

कभी आँखों में भर देती, ये अश्कों के समंदर को
मिलन की सेज है जैसे, कभी जैसे ये विरहन है ।

कसक में भी हँसी जैसी, मिलन में भी उदासी-सी
नदी के दो किनारों-सी, कभी संगम-सी पावन है ।

कभी मंदिर के दीपक-सी, कभी श्रद्धा-सुमन जैसी
कभी प्रीतम के आलिंगन में बन जाती समर्पन है।

बिना बोले जो आँखों में पढी़ जाये, वो भाषा है
जो दिल का हाल चेहरे से बयाँ कर दे, वो दर्पन है ।

 

2दिल में उठती इन लहरों में कितने ही अफसाने हैं
ढेरों दर्द हैं अनजाने से, थोडी़ सी मुस्कानें हैं ।

जख्मों को फिर छेड़ गये वो, प्यार का फा़हा रख रखके
मरहम भी अब तो चुभता है, गहरे घाव पुराने हैं ।

मुझसे हुआ रूबरू क्यों तू, चेहरे पर चेहरा रखकर
भूल गया क्या, तेरे दिल में अब भी मेरे ठिकाने हैं ।

अक्सर तन्हाई से डरकर उसकी यादें ओढी़ हैं
मेरे साथ सुकूँ के जिसके, सदियों के याराने हैं ।

लब पर आते-आते अब जो लफ्ज़ फना हो जाते हैं
उन लफ्ज़ों से टूटे दिल ने गाये कई तराने हैं ।

शब भर चाँद जलेगा फिर से, वो आया है पास मेरे
कितनी ही तनहाँ रातों के किस्से उसे सुनाने हैं ।

डाॅ. सुमन ‘सुरभि’
जन्म- 1 जनवरी 1971
पता- 36, रुचि खण्ड 1
शारदा नगर, लखनऊ
सम्पर्क 9519201025

News Reporter

2 thoughts on “सुपरिचित ग़ज़लकारा डाॅ. सुमन ‘सुरभि’ की दो सदाबहार ग़ज़लें

  1. बहुत खूब लिखा है आपने ।
    ढेरों मंगल-कामनाएं ।
    नीरजा

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