“हकीकत बयान करती ग़ज़लों का संग्रह……अल्फ़ाज़ के पंछी
पुस्तक समीक्षा
समीक्षक-
सोनिया वर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़
कविताएँ, दोहें ,ग़ज़ले हो या कोई भी छंद..मनुष्य की  भावनाओं, संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने का माध्यम है..। ये माध्यम बहुत कारगर भी है क्योंकि इससे हम अपनी वो बातें और जज़्बात व्यक्त करते है जो किसी अन्य से कह पाना संभव नही होता.. इसमें हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी  प्राप्त हो जाती है..।।
कोई भी रचना पूर्णतः यथार्थ पर आधारित नही होती है।कुछ विचार ,कल्पना और वास्तविकता को मिलाएँ तो रचनाएं बनती है..।।
वर्तमान समय में प्रेम ,द्वेष, घृणा, त्याग, त्यौहार, प्रकृति, देश प्रेम जैसे अनेकों विषय है जिस पर अपने भाव को आदिकाल से अब तक व्यक्त करते आ रहे है..।।।एक से बढ़कर एक  रचनाकार है  जिनमें से कुछ को हम सब जानते है पढ़ें और सुने भी है और बहुतों से अनजान भी है…।।। ग़ज़लों की बात करें  तो नये प्रयोग के लिए दुष्यंत कुमार का नाम ही सर्वप्रथम आता है । आज हम ऐसे ही एक ग़ज़लकार की ग़ज़लों की बात करेंगे ..जिन्होंने अपनी पुस्तक “अल्फ़ाज़ के पंछी” में बहुरंगी भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त किया है..।। अल्फ़ाज़ के पंछी” के ग़ज़लकार चेतन आनंद है ,जिसमें प्रेम ,वियोग,दर्द, दया,संघर्ष ….प्रकृति प्रेम जैसे बहुत से विषय पर लिखी ग़ज़लों का समावेश है..
शुरू के कुछ ग़ज़लों को पढ़ते वक़्त ऐसा लगा जैसे चेतन जी के जीवन में प्रेम बहुत मायने रखता है चेतन जी ये जानते है कि जीवन इक गाड़ी की तरह  है जो एक पहिए पर बमुश्किल ही चल पाती है इसलिए दोनों  पहियों का होना जरूरी है ।वो प्रेम निभाना ,प्रेम में रूठना और मनना भी जानते है । मुखर प्रेम में तो अपनी बातें कह दी जाती है पर मौन प्रेम थोड़ा कठिन होता है..चेतन जी  कहते है कि….
थी बहुत दिन से अधूरी जो कमी पूरी हुई
तेरे आने से हमारी ज़िंदगी पूरी हुई
इससे आगे वो अपनी जीवन -संगनी को कहते है की आपके आते ही मेरा जीवन खुशियों से भर गया हर तरफ प्रसन्नता और खुशियां ही खुशियां है..
द्वार, छत,दीवार, आँगन, कोने-कोने देख लो
सब हुए रोशन तुम्हीं से रोशनी पूरी हुई
चेतन जी कहते है की उनकी प्रिये इतनी सुन्दर है कि जब भी किसी बगीचे में जाती है तो उनकी मोहकता और सुन्दरता फूल भी देखते रह जाते है चेतन जी स्वयं उनकी हर बात संजोये रहते है हरपल याद करते रहते हैं….
चेतन आ जाये वो गुलशन में तो फिर
ख़ुशबू भी सब हारी-हारी रहती हैं
मुझमें उसकी यादें प्यारी रहती हैं
तब ही आँखें भारी-भारी रहती हैं
यहां भी अपनी बात न समझ पाने पर अपने प्रिय से कोई शिकायत नही करते बल्कि खुश होते कि हमारे दिल की बातें न समझी तो क्या हुआ हमारे गाल पर कुछ तो लिखा …
पढ़ नहीं पाया हमारे दिल को वो तो क्या हुआ
चूमकर उसने हमारे गाल पर कुछ तो लिखा
प्रेम की पराकाष्ठा  कितनी सादगी से चेतन जी ने व्यक्त किया है। वर्तमान के अधिकतर प्रेम मात्र जीस्म की चाहत के लिए होते है पर इनका प्रेम तो रूहानी है तभी तो कह रहे है कि..
मुझे थी चाह जिसकी वो तेरा दिल मिल गया मुझको
मुझे क्या काम तेरे जिस्म से चाहे जहाँ भी हो
इक पल की दूरी भी अपने प्रिय से चेतन जी को नहीं भाती और वो सहसा ही अपनी तड़प को निम्न शेर से व्यक्त करते हुए कहते है कि…
तुमसे जबतक रहेगी ये दूरी
साँस तबतक रहेगी अधूरी
खुद से दूर अपनी प्रिय से ये कह बैठते है की तुम अगर नाराज़ हो तो ख़त भेजोगी नही नफरत जताने के लिए ही ख़ न भेजकर कम से कम पत्थर ही भेज दो ..
कुछ न कुछ तो ऐ सितमगर भेज दे
ख़त नहीं तो चंद पत्थर भेज दे
और आगे कहते है की पत्थर  भी न भेज पाओ तो तुम अपनी यादों को भी ले जाओ ।ये अब संभाली नही जाती हमसे।, हरदम परेशान करती रहती है…..
अपनी यादें भी हमसे ये ले लो
कोई कब तक इन्हें अब संभाले
मौन प्रेम बिना कुछ कहे  प्रेम का इजहार करना   है ..अपने प्रिय को खुश देख कर यह कह उठते है कि…
देख ली रोशन नज़र तेरी तो हमको ये लगा
ये ग़ज़ल जो थी अधूरी, बस अभी पूरी हुई
किसी और के दुख ,तकलीफ़ को इस तरह महसूस करना की जैसे वह तकलीफ़ हमें  ही हो रही है और  हमारे ही आँसू टपकने लगे  ….
तड़पते दिल की पुकार लेकर, जगह पुरानी बदल के आँसू
हमारी आँखों में आ गये हैं,तुम्हारी आँखों से चल के आँसू
परिन्दों के मरोड़े पर जो उसने
लगा टूटा हमारा दिल अचानक
इतनी सारी प्रेम से ओत- प्रोत शेरों को पढ़ कर कोई भी यह निष्कर्ष निकाल लेगा की चेतन जी प्रेम भाव की ग़ज़लें ही कहते  है पर ऐसा आप बिल्कुल भी न सोचें क्योंकि अन्य शेरों को देखिये…हर पिता अपने बच्चों की हँसी ,खुशी चाहता है और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है । बच्चों के  साथ ही अपना बचपन भी जीता है…चेतन जी भी कह रहे है कि…
वो ख़्वाब में अपनी बिटिया जो देखी
उसी की हँसी पर ग़ज़ल लिख रहा हूँ
 पिता संतान की उन्नति ,तरक्की के लिए सब कुछ करता…अपने बच्चों को हर प्रकार की सुख सुविधा देना चाहता है …ये तो इक पिता बखूबी समझ सकता है…..पिता की तुलना किसी भी चीज से करना संभव ही नही ।चेतन जी ने भी क्या खूब पिता की स्थिति की तुलना की है देखिए शेर में…
अगर याद आये पिता की कभी तो
नगर में झुका-सा शजर देख लेना
गलतियां किस से नही होती है पर गलतियों का प्रायश्चित बहुत कम लोग ही करना चाहते है और प्रायश्चित करने के लिए न जाने कितने व्रत ,उपवास या मंदिरों ,दरगाहों के चक्कर काटते है । चेतन जी ने क्या  नायाब तरीका निकाला है अपनी प्रायश्चित का क्योंकि माँ का स्थान किसी देवी-देवता से कम नही है  ….
खूब ख़ताएँ की हैं मैंने, पश्चाताप करूँ कैसे
माँ के आगे सर रख दूँगा, सोच लिया तो सोच लिया
वर्तमान परिस्थितियां बहुत विचलित करने वाली है यह जानते सभी है पर मानता कोई भी नही, आप कितनी भी मेहनत कर लीजिए पर फल कोई और ले जाता है इन हालातों से आहत चेतन जी कहते है कि
आज के इस दौर की खूबी यही है सिर्फ़ तुम
अपने हक़ के वास्ते बस याचना करते रहो
देखिये कैसे रिश्ते अनूठे मिले
जो मिले सब हमें लोग झूठे मिले
ऐसा नही की केवल हमारा हक़ ही नहीं मिल पा रहा बल्कि लोगों  का व्यवहार और आदते भी बहुत तेजी से बदल रही है ।आज पैसे को ही अपना सब कुछ मान लेने वाले लोगों ही रह गये है बस। हमारे बड़े ,बुजुर्ग इन हालातों को देख बहुत दुखी और परेशान हो रहे है कवि  कहते है कि…
हालत देख ज़माने की अब बड़े बहुत ही रोते हैं
कैसी दौलत हाय कमा ली हमने किस नादानी में
आज के व्यस्त जीवन में लोगों के पास इतना समय नही की अपने आसपास की घटनाओं को जाने बल्कि स्थिति इतनी खराब है कि पड़ोस में या शहर में हुई घटना भी हमें अखबार से ही या न्यूज से ही पता चल पाती है…
हुआ हादसा है किधर देख लेना
नहीं तो सुबह की ख़बर देख लेना
देश में आतंकवाद की घटनाएं इतनी बढ़ गई है  कवि इस पर कटाक्ष करते हुए एक त्यौहार का नाम दे रहे है ।कुछ स्थान और समय जैसे पहले से तय हो और कवि कहते भी है कि जहाँ पर भी पत्थर ,कांच के टुकड़े आगजनी जैसा दिखे बस समझिये की सहर में त्यौहार था मतलब कोई घटना घटी है….
काँच के टुकड़े, छुरे पत्थर सड़क पर देखकर
हमने जाना शहर में कल फिर कोई त्यौहार था
गांव से आए सीधे-साधे लोग शहर की चमक-दमक में इस कदर खो जाते है कि गांव उन्हेँ याद ही नही रहता ….
शहरी हवा से इक दिन गाँवों की गंध बोली
बरसों की दुश्मनी से फुर्सत मिले तो आना
भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी शहरों में बहुत बढ़ी गई है छोटे से छोटे या बड़े कैसे भी काम हो करवाने के लिए बाबूओं को पैसे देने ही पड़ते है नही तो काटते रहिए चक्कर ऑफिस के। गांव में कई काम भाईचारे ,यारी-दोस्ती में ही हो जाते है ऐसे मे यदि कोई गांव से शहर में आए तो उसकी स्थिति पर शेर देखिये…
गाँव का भोला किशन जेबें कटाकर आ गया
क्या पता था उसको होंगी दफ़्तरों में कैंचियाँ
शहरी जीवन व्यस्तता से भरा है यहां लोगों के पास वक़्त ही नहीं । लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोन और कर्जे से इतना दब जाते है कि उनका दम घुटने लगता है ..देखिये शेर…
गरदन गिरवी,साँसें गिरवी, सिर भी गिरवी बैंकों में
बाल-बाल कर्ज़ा-कर्ज़ा है,क्या रक्खा है शहरों में
पाश्चात्य देशों की इतनी नकल हो रही है की अपनी संस्कृति और परम्परा देखने को मिलती ही नही या बहुत कम …
पछवा हवा चली तो बहुत हो गये जुदा
अब कम ही लोग हैं, जो हैं पुरवाइयों के साथ
लोगों को वाट्सएप, फेसबुक की इतनी बुरी लत लगी है कि एक ही घर में रहते हुए बाते वाट्सएप और ई-मेल से करते है मां ,पिता फेसबुक ,वाट्सएप और ट्विटर पर इतने मसगुल रहते है की घर परिवार की सूध तक नही रहती..
पप्पू मोबाइल पर है और मम्मी लगी है ट्विटर पे
पापा ने पंछी पाला है,क्या रक्खा है शहरों में
हमारे देश की न्याय व्यवस्था कितनी खराब है यह किसी से छुपी नही है कुछ मुजरिम पकड़े नही जाते कुछ पकड़े जाते है तो सालों तक केस चलता रहता है और कुछ सबूतों के अभाव में छूट जाते है नही तो तारीख पर तारीख मिलते रहती है देखिये शेर…
भीड़ ने मुजरिम को मौके पे तो पकड़ा था मगर
वो अदालत में कभी क़ातिल नही समझा गया
राजनीतिक माहौल इतना ख़राब हो गया है कि एक -दूसरे पर बेकार की बातें कहीं जा रही एक -दूसरे की इज्ज़त उछाली जा रही है उसे सुनकर ऐसा ही लगता है कि…
मुश्किल तो नहीं यारो,आसान-सा लगता है
सरकार गिरा देना, सरकार खड़ी करना
साथ ही चेतन जी इन सभी राजनीतिक लोगों को चेतावनी भी दे रहे है कि दुश्मन हम पर नज़र रखे हुए है जो भी करे जरा सोच -विचार कर करें …
भले कुछ भी करो लेकिन हमेशा याद ये रखना
पड़ोसी भाँप लेते है जो अनबन घर में होती है।
आज के वक़्त मे दुखी के दुख को दूर करने वाला यहाँ तक की सुनने वाला भी कोई नही है,
लोगों में संवेदनाओं और भावनाओं का खत्म होने से कवि  इतने आहत  है कि कह उठते है कि….
ये हक़ीक़त है यहाँ मेरी कहानी बैठकर
ग़ौर से सुनते रहे कल चंद बहरे देर तक
बढ़ता हुआ प्रदूषण हमें किस और ले जा रहा है
पेड़ पौधो की अंधाधुंध कटाई हमें विनाश की कगार पर ला खड़ी कर देगी.. ग्लोबल वार्मिंग,प्रदूषण जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही है जिसमें साँस लेना भी दूभर है….
इस ज़मी को न इतना सताओ
थक चुका आसमाँ कहते -कहते
प्राकृतिक नज़ारों को राष्ट्रीय उद्यान या बाग बगीचों में ही देखा जा सकता है पहाड़, पर्वत नदियां , झरने सब खत्म होने की कगार पर है भविष्य में बच्चों को तो शेर भालू या झरने यहां तक की असली के फूल आदि की फोटो ही देखने को मिलेगी …
इन नज़ारों को अब तो बचा लो
कोई हमसे न इनको चुरा ले
हाथों मे अब तो सूखे गुलदस्ते हैं
खुले बाग़ के लोग नज़ारे भूल गये
केवल फूल -फल ,जानवर ही नही पक्षियों की दशा भी बहुत ख़राब है फिर भी मनुष्य चेत नही रहा और न ही इनके बचाव के लिए कुछ कर रहा है बल्कि उत्तरोत्तर शिकार करने की प्रवृत्ति  बढ़ती ही जा रही है…और लोग इस सब से बेखर मौज़ में लगे है बस पाश्चात्य संस्कृति को अपनाएं जा रहे है कवि कहते है कि….
परिन्दों से है आसमान आज खाली
कहाँ लेके तीरो-कमाँ जा रहा है
कहाँ था,कहाँ से,कहाँ जा रहा है
बड़ा बेख़बर कारवाँ जा रहा है
साथ ही साथ कवि लोगों को नसीहत  देते है कि रूढ़ी परंपराओं को छोड़ खुद को बदलो जमाना बहुत तीव्रता से बदल रहा है नहीं तो आप बहुत पीछे रह जायेंगे कवि कहते है कि..
अब तो बदल पुराना सोच
पहुँचा कहाँ ज़माना सोच
चेतन जी के शेरों में आध्यात्मिकता और दार्शनिकता भी दिखाई देती है अर्थात वे भी ईश्वर, अल्लाह ,पैगम्बर के अस्तित्व को स्वीकार करते है,उस परमात्मा की सत्ता को स्वीकारते है ।चेतन जी मानते है की हम जो भी इच्छा या स्वप्न देखते है उसे पूरी करने की हिम्मत हमें उस परमात्मा से मिलती है जो अदृश्य है हमारे और उसके बीच एक बहुत ही महीन पर्दा मात्र है…
बड़े -से हौसले जो मन में मेरे बैठे हैं
मैं जानता था वो इनमें उड़ान भर देगा
छुपके क्यों रहता है तू इक बार आ तो सामने
एक पर्दा-सा पड़ा है तेरे-मेरे दरमियाँ
चेतन जी दुनिया और दुनिया में रह रहे लोगों का व्यवहार भलिभांति जानते है वह खुद बहुत सरल है इसलिए उनको हमेशा छलने वाले ही लोग मिले या यूं कहे कि दोहरे व्यवहार वाले लोग ।फिर भी चेतन जी साफ कहने और सुनने के आदी है इसी व्यवहार के कारण कुछ मित्र तो कुछ शत्रु बनते गये ..चेतन जी कहते है कि….
अजब हूँ कठिन को सरल लिख रहा हूँ
मैं ग़म को ख़ुशी की पहल लिख रहा हूँ
लोग ऐसे मिले हमको चेतन
जैसे भीतर थे,बाहर नहीं थे
साफ कहना है,साफ सुनना है
अपनी आदत ये ख़ानदानी है
लोग सब हैरान, मुझसे पूछते हैं आजकल
तुम ख़बर कैसे बने अख़बार से रहकर अलग
एक कवि जब कविता लिखता है तो वह अपनी भावनाओं को उसमे पिरोता है जो हर पाठक को आप बीती या आँखो देखी प्रतित होती है चेतन जी कहते है कि
चेतन तुम तो कवि हो ,तुमको-
सबके दिल तक जाना होगा
सब मालिक बनना चाहते है और एक ऐसे नौकर की चाह रखते है जो उनकी हां में हां मिलाए…..
भला तू ही बता मैं शर्त उसकी मान लूँ कैसे
वो कहता है कटे पर का परिन्दा बेज़ुबाँ भी हो
कवि महोदय अच्छे से जानते है कि ज्यादा ऊंचाई अच्छी नहीं होती ऊंचाई पर जाओ तो भी जमीन पर पैर जरूर रहे वरना आपका अंत शीघ्र ही हो जायेगा …..
इसलिए तो मैं मिट्टी से लिपटा रहता हूँ
ये आसमान तो मुझमें गुमान भर देगा
ग़मों का,आँसुओं का तापमान देख लिया
उठे जो ऊँचे तो ये आसमान देख लिया
इतनी ऊँचाइयाँ न आज हमें दो यारो
सिर्फ गुजरे हुए हम वक़्त के पल जैसे हैं
जीवन का एक मात्र सत्य है की जिन्दगी के साथ मृत्यु भी जुड़ी है जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु होनी ही है इन शेरों को देखिये…..
खुली रही तो रोशनी ने कर दिया अंधा
जो आँख बंद की,पूरा जहान देख लिया
अपना जो ये जीवन है इक नाव के जैसा है
इस पार से ले जाकर उस पार खड़ी करना
सभी कहते है की किताबें पढ़ लो हर तरह का ज्ञान आपको मिल जाएगा पर चेतन जी कहते है की जिन्दगी तो ठोकर खा कर ही समझ में आती है जितनी अधिक ठोकर उतना अधिक अनुभव.. साथ ही ये भी कहते है की हम सब कवियों को याद रखना चाहिए कि बुजुर्गों का आशीर्वाद और वचन बहुत कीमती है भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है….
ग़लत हैं वो जो कहते हैं नसीहत है किताबों में
मैं कहता हूँ नसीहत तो सदा ठोकर में होती है
सलीके भूल मत जाना अदब के
बुजुर्गों के वचन हैं ये ग़जब के
सभी लेखक और कवियों को कहते है की जमाने मे जो भी परिवर्तन आएगा वह कोई न कोई कवि ही लाएगा और खुद पर गर्व करते हुए कहते है कि हमें कौन क्या अब सीखा पाएगा हम तो कुँवर जी के चेले है…
क़लम उठाकर चलो ये लिख लो,जहाँ की सूरत बदल रही है
जहाँ की सूरत बदलने वाला,कोई न कोई अदीब होगा
इन रगों में बसते है गीत, नज़्म,कविताएं
क्या सिखाओगे हमको हम कुँअर के चेले हैं
कुछ ग़ज़लों में दोहरे शब्द जैसे कहते-कहते या कोई- कोई जैसे रदीफ़ का भी बहुत अच्छा उपयोग किया गया है जिससे ग़ज़ल में अलग ही निखार आ जाता है और साथ ही अंग्रेजी के शब्दों का भी कुछ ज़गह पर प्रयोग बहुत अच्छा है।चेतन जी ने कुछ ग़ज़लें लम्बी -लम्बी रदीफ़ पर भी कही है और बखूबी निभाई भी है जैसे सोच लिया तो सोच लिया या क्या रखा है शहरों में…
इन चराग़ों को महफूज़ रखना
चल दिया कारवां कहते-कहते
मॉम-डैड से अलग और रिश्ते भी हैं
फ्लैटों के बच्चे बेचारे भूल गये
चेतन जी की शायरी आम जनजीवन से जुड़ी हुई है सामान्य शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसे समझने में पाठक को तनिक भी कठिनाई महसूस नहीं होती।चेतन जी की पुस्तक “अल्फ़ाज़ के पंछी” की सभी ग़ज़लें बेहतरीन है पर सब को यहां लिखना संभव भी नही .. यह पुस्तक जरूर अपने मुकाम पर पहुंचेगी इतनी बेहतरीन पुस्तक के लिए चेतन आनंद जी को बहुत बहुत बधाई आगामी समय में भी आपकी ऐसी पुस्तकें आती रहे इसी शुभकामनाएं के साथ ….
“”
दुनिया में दे आपको,नाम और पहचान।
अल्फ़ाज़ों के पंछी सदा,भरे ऊंची उड़ान।।””
समीक्ष्य पुस्तक- अल्फ़ाज़ के पंछी
रचनाकार- चेतन आनंद (Chetan Anand)
विधा- ग़ज़ल
प्रकाशक- अयन प्रकाशन, दिल्ली
संस्करण- प्रथम( 2018)
News Reporter

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