‘साहित्यम’ के कवि सम्मेलन में 30 से अधिक कवियों ने किया काव्यपाठ

गाजियाबाद। साहित्यम परिवार ने क्रॉसिंग रिपब्लिक में कवि आशीष सक्सेना प्रकाश कानपुर की अगुवाई में एक भव्य काव्य सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें दिल्ली एनसीआर के 30 से अधिक कवियों ने उम्मीद से बढ़कर कविताओं का प्रदर्शन किया। कवियांे में दानिश मो. खान इलाहाबाद, चेतन आनंद गाजियाबाद, अनन्य देवरिया देवरिया, पुनीत अग्रवाल पीलीभीत, योगेश राठौर दिल्ली, राहुल जैन नेएडा, अमित त्रिपाठी गोरखपुर, डॉ. राजन गोत्रा, अनिमेष शर्मा, सौरभ सदफ, जगदीश मीणा, गिरीश सारस्वत, अंकुर मिश्रा, मुस्कान माधुरी और शैलजा सिंह ने अपने अनुभवी कविता पाठ और गजलों से समां बाँध दिया। पूरे माहौल को देशभक्ति और प्रेम से ओतप्रोत कर दिया।
वहीं युवा रचनाकारों में ब्रिज भूषण रूहदार, ओमजी मिश्रा, मो. अबरार, आशीष रोशन लाल शर्मा, शैल जौहरी, कमल, रजत सूद, कृष्णा, एआर साहिल, सौरभ श्रीवास्तव व चैतन्य ने देशप्रेम पर एक से बढ़कर एक कवितायें प्रस्तुत कीं। युवा कवियत्रियों में शैफाली शर्मा, और पल्लवी ने उत्साहपूर्ण कविताओं का पाठ किया। खामोश हम रहे तो पहल कौन करेगा, उजड़े चमन में फेरबदल कौन करेगा, इन पंक्तियों से कवि चेतन आनंद ने नए कवियों को साहित्य के प्रति श्रद्धा का नया पथ दिखलाया। पंडित बैठे दान भरोसे, मुल्ला जी रमजान भरोसे, ये कलयुग है इसमें तो बस करते हैं नादान भरोसे, ब्रज भूषण की इन पंक्तियों से पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा। ओज के युवा हताक्षर अनन्य देवरिया ने जब अपनी वाणी में कहा कि शीश उतर जाते थे धड़ से पर त्योरी चढ़ जाती थी, कटी भुजायें शस्त्र उठा भूचालों से लड़ जाती थी, तो मानो यूँ लगा कि राम प्रसाद बिस्मिल और आजाद की पुण्य आत्माओं ने तेज हवा चला कि साहित्यकारों को आशीर्वाद दिया। गजलकारों में सौरभ सदफ ने अपने अंदाज में शजर को आजमाने में लगे हैं, सभी टहनी झुकाने में लगे हैं, देश के मौजूदा हालात को बयां किया।
हिंदी ओज के प्रतिभावान कवि अमित त्रिपाठी ने हे इंकलाब के लाल भगत सिंह हम तुम्हारा ऋण न चुका पाएंगे, कविता पढ़कर वीर भगत सिंह को श्रद्धांजलि दी, वहीं आशीष प्रकाश ने तुम इंकलाब की डोर बनो, हम गीत बसंती गाते हैं, गीत गाकर भगत सिंह और फांसी के फंदे के बीच का संवाद दर्शाया। युवा कवियों में कमल सामल ने सीमा पर जो प्राण है देते, क्या मिलता है उनको बताओ, कहके सशक्त प्रश्न रखे। मैं नहीं जानता जात मेरी, इंसान से ज्यादा क्या होगी…मैं भारत मां का बेटा हूं, पहचान भला अब क्या होगी, इस गीत से ओमजी मिश्रा ने एक अमिट छाप छोड़ी। कोई उमर आजादी मांगे हिन्द के टुकड़े करने की, और कन्हैया मांगे विष को युवा रक्त में भरने की, इन शब्दों से शैल जौहरी ने अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल किया। तिरंगे के चार रंगों को सुहाग की तरह सजाऊंगी, पढ़ शैफाली ने सबको भावुक कर दिया। दुर्बल रहे बचपन, बिना मजबूत शिक्षा, स्वास्थ्य के, ऐसी आजादी नहीं है काम की, ये बस लिखी है नाम की, कविता पढ़ के चैतन्य ने अपना भाव प्रकट किया। ए वतन मेरे वतन, तू ही धरा, तू ही गगन, कह आशीष रोशन लाल शर्मा ने अपना भावपक्ष रखा। वहीं जब प्रेम की बात चली तो मुस्कान ने अपने स्वर से मोहब्बत का जमाने में नया पैगाम लिख देंगे, हम अपने नाम के आगे तुम्हारा नाम लिख देंगे, कहके माहौल प्रेममय कर दिया। कवि पुनीत अग्रवाल ने प्रेम का गीत दिल में कोई गुबार मत रखना, आंख में इंतजार मत रखना पढ़के माहौल में चार चाँद लगा दिए।

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