ग़ज़ल-1
दयार- ए- ऐश में जीना अज़ाब होता है
किसी किसी का मुक़द्दर ख़राब होता है
हक़ीक़तों के खिलौने हैं वक़्त के प्यादे
हसीन ज़ीस्त हो सबका ही ख़्वाब होता है
कुसूरवार ज़बाँ को बता बता के थके
सवाल जैसा हो वैसा जवाब होता है
भटक रहें हैं हज़ारों अदीब आस लिए
ये शोहरतों का जहां भी सराब होता है
मुहब्बतों के उजाले समेट ले जो भी
उसी हसीन के रुख पर शबाब होता है
ग़ज़ल-2
हमने किसी हसीन को दिल में बसा लिया
यानी के अब तो इश्क़ ही मज़हब बना लिया
कुछ ख्वाहिशें तो हुस्न के जलवों में खो गयीं
कुछ ख्वाहिशों ने आग में जल कर मज़ा लिया
चढ़ता गया नज़र में मेहरबानियाँ मिलीं
सिजदे में जिसने हुस्न के सर को झुका लिया
फिर यूँ हुआ के इश्क़ में बदनाम हो गये
सारे जहां को मुफ्त में दुश्मन बना लिया
मत रो के आशियाना तेरा ख़ाक़ हो गया
ये कम नहीं के दाग से दामन बचा लिया