एक दृष्टि में समीक्षा-  ‘ मन की पाँखें ‘ : हाइकु संग्रह

हाइकुकार:डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
प्रकाशक-हर्फ मीडिया प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली
पृष्ठ-105
मूल्य :175 रुपये

डॉ. राजीव कुमार पांडेय जी का हाइकु संग्रह ‘ मन की पाँखें’ देखने पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ . पुस्तक में संग्रहीत सभी हाइकु रचनाकार की बेहतरीन प्रस्तुतियां हैं .
पुस्तक के प्रारम्भ मे कवि ने पारम्परिक ढंग से माँ शारदा की वंदना से किया है . सत्य है , माँ सरस्वती की कृपा के लिये तो सभी साहित्यकार लालायित रहते हैं .

हंसवाहिनी
माँ धवल धारिणी
कृपा रस दो ।
डॉ राजीव पाण्डेय जी एक सहृदय कवि हैं जिनका मन प्रकृति के विभिन्न रूपों से प्रभावित होता है . एक ओर वह प्रकृति की सुरम्य वादियों में डूब जाना चाहता है तो दूसरी ओर मानव द्वारा प्रकृति के अनुचित दोहन के प्रति विद्रोह से भी भर उठता है . जीवन के विभिन्न रूप उसे आकर्षित करते है.
कवि ने प्रकृति को भिन्न भिन्न रूपों का अवलम्बन लेकर हाइकु लिखे हैं –
सुन लो भाई
बहती पुरवाई
बादल लाई ।                                                                                                                                          समीक्षिका- डॉ रंजना वर्मा 

अथवा –

आँधी के झोंके
प्रकृति का कहर
किसने रोके ।

तथा –

पड़ा अकाल
दुखियों के सवाल
काल के गाल ।

मानव की उपेक्षा के फलस्वरूप –

कुंआ तालाब
बावड़ी धर्मशाला
कहाँ जनाब ।

कहीं डॉ राजीव पाण्डेय जी प्रेम को रेखांकित करते हैं तो कहीं राष्ट्र प्रेम का संदेश देते हैं । आज की परिस्थितियों में त्रस्त होती , प्रेम के झूठे भुलावे में पड़ कर तथा अपनी अस्मत गंवाने वाली कन्या का कुंवारी माँ बनना उन्हें व्यथित करता है तो अजन्मी कन्याओं के दुख की कचोट भी उनके हाइकु  में स्थान पाती है । देश की दूषित राजनीति तथा जनता को प्रलुब्ध कर उनका मत पाने की चेष्टाओं की भी वे उपेक्षा नहीं करते । उनका शाश्वत प्रश्न अब भी सामने मुँह बाये खड़ा है –
देश के हित
राजनीति चाहिये
करेगा कौन ?
अंत मे इतना ही कहना चाहूँगी, हाइकु संग्रह ‘मन की पाँखें’ निश्चित रूप से पठनीय तथा संग्रहणीय है ।

News Reporter

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