हमारे द्वारा किये गये हर कार्य को सराहा जाये हमारे हर कार्य की तारीफ हों, हमें सदैव प्रशंसा ही मिले यह जरूरी तो नहीं और न ही हमें ऐसी कामना करनी चाहिये, न ही हमें यह सोचना चाहिये कि हम जो कुछ कर रहे हैं वह सही है हम कभी गलत हो ही नहीं सकते और सदैव ही हमारी पीठ थपथपाई जायेगी। कभी हमारे कृत्यों की कोई आलोचना कर ही नहीं सकता। लेकिन जीवन में कभी ऐसे क्षण आते हैं जब आपके द्वारा किये गये कार्यों की आलोचना की जाती है या उनमें कमियाँ निकाली जाती है और ऐसा क्यों न हो क्योंकि जो व्यक्ति कार्य करता है। उससे ही गलतियाँ होती है वही कभी गलत व कभी सही कार्य करता है जो व्यक्ति कुछ करता ही नहीं उससे अच्छा व बुरा, गलत व सही किसी की भी उम्मीद नहीं की जा सकती। अगर हमारे किसी कार्य की आलोचना हो रही है तो हमें उसे भी सकारात्मक रूप में लेना चाहिये। हमें यह सोचना चाहिये कि भविष्य में हमसे यह गलती या गलत कृत्य नहीं होना चाहिये। हमें अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिये। भविष्य में उसे सुधारने का प्रयत्न करना चाहिये।
हर व्यक्ति को अपनी प्रशंसा व तारीफ सुनना अच्छा लगता है। कोई भी अप्रिय बात या आलोचना सुनना किसी भी व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता। जो व्यक्ति उसके कार्य में गलती निकालता है या उसकी आलोचना करता है तो उसके प्रति उसके मन में खिन्नता आती है। वह व्यक्ति उसे अपना शत्रु नजर आता है और वह उस व्यक्ति से भविष्य में कोई सम्बंध नहीं रखना चाहता। लेकिन वह यह नहीं समझ पाता िकवह कितना भी होशियार हो , कितना भी अच्छा कार्य करता हो, लेकिन कभी उससे भी गलती हो सकती है और वह स्वयं उस गलती को भी नहीं पकड़ पाया और दूसरे व्यक्ति ने उसको इंगित किया तो वह उसका धन्यवाद करें और भविष्य में उस गलती को सुधारने का प्रयास करें। कुछ व्यक्ति कुछ रौबदार व रूतबंदार लोगों के मुँह पर सदैव उनकी तारीफ करते हैं, उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं क्योंकि वे उनके रूतबों तले दबे होते हैं, डरते हैं, कहीं वे उनका कोई अनिष्ट न कर दें। लेकिन ऐसे चमचागिरी करने वाले लोंगों से बचना चाहिये क्योंकि बिना बात तारीफ करके वे आपकी सफलता में बाधक बन रहे हैं। आपको सही निर्णय नहीं लेने दे रहें है बल्कि आपके गलत कार्यों की भी प्रशंसा करके आपके विकास को अवरूद्ध कर रहे हैं।
एक सच्चा आलोचक आपका सच्चा हितैशी है। आप भविष्य में ऐसी गलती फिर न करें या आपके हाथों किसी का नुकसान न हो इसके लिये वह आपको सचेत कर रहा है। आपको उसकी इज्जत करनी चाहिये। यह नहीं सोचना चाहिये कि उसने आपको नीचा दिखाकर या आपमें कमी निकाली बल्कि यह सोचना चाहिये कि उसने आपको पथ भ्रमित होने से रोका और आपको सही मार्ग दिखाया। लेकिन आलोचना करने वाले व्यक्ति दो प्रकार के होते है। एक वे जो सकारात्मक रूप से आपका हित करना चाहते हैं इसलिये वे आपकी आलोचना करके आपको सही रास्ता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं और एक जो आपके दुश्मन या प्रतिद्वन्दी हैं और आपका अहित करना चाहते हैं। इन दोनों का फरक समझकर आपको अपने शुभचिन्तक और अपने हितैषी को सकारात्मक लेना चाहिये और उनके द्वारा की गई आलोचना पर ध्यान देना चाहिये। इस प्रकार दोनों तरह के व्यक्तियों द्वारा की गई आलोचनाओं पर हमें सावधान रहना चाहिये। अगर कोई व्यक्ति अपनी आलोचनाओं को सहना सीख जाता है तो वह ज्यादा संतुलित जीवन का निर्वाह कर सकता है। प्रायः वही व्यक्ति अपनी आलोचनाओं को नहीं सुन पाते जो अंहकारी होते हैं। वे अपने अहंकार को इतना बड़ा स्थान अपने जीवन में दे चुके होते हैं कि उन्हें अपने सामने सभी बौने व तुच्छ नजर आते है। उन्हें अपनी झूठी शान में आनन्द आने लगता है और वे सिर्फ सदैव अपना गुणगान ही सुनना चाहते है और वे सिर्फ उन्हीं लोगों को पसन्द करते हैं जो उनकी झूठी यशोगाथा का गुणगान करते हैं। हम अपनी आलोचना सुनकर एकाएक उसपर अपनी प्रतिक्रिया दे देते हैं जबकि उस समय हमें अपने पर नियंत्रण रखना चाहिये और उसे अच्छी तरह से जाँच परख कर सही निर्णय लेना चाहिये। क्योंकि आलोचनाएं सुनकर आप अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं जो हो सकता है आपके हित में हो। सदैव तारीफ करने वाले लोग हमें लाभ की बजाय हानि ज्यादा पहुँचाते हैं इसलिये हमें इनसे सतर्क रहना चाहिये। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुये अपनी आलोचनाओं को सुनना, उस पर विचार करना, अपनी कमियों को सुधारना, धैर्य बनाये रखना हमें आगे बढ़ने में सक्षम व समर्थ बनाता है।
लेखिका
डाॅ. अलका अग्रवाल
निदेशिका, मेवाड़ ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस
सेक्टर 4सी, वसुंधरा, ग़ाज़ियाबाद