आई मुश्किल में जाँ, उसने जानाँ कहा, शर्म से बिन कहे उसको हाँ, आ गये
सिर था मगरिब ज़बाँ अपनी मशरिक चली, राज़ होता दिखा जब अयाँ,
आ गये कितने वादे हुए, कितनी रुसवाईयाँ, इन निगाहों में सबके बयाँ आ गये
जिनको रोका था फ़ुरक़त में इसरार से मेरे आँसू भी करने फ़ुगाँ आ गये
खोजते खोजते नक्शे-पा इक सफ़र पर चले तो वहाँ से यहाँ आ गये
तुम मिलोगे सफ़र में भरोसे पे हम छोड़ रंगीनियों का जहाँ आ गये
दूरियाँ हो गईं खुद पशेमान जब अपने तेवर लिये बीच से हट गईं
और हम दोनों थे जिस जगह पर मिले दोस्तों की तरह फिर वहाँ आ गये
ग़ल्तियाँ, तल्ख़ियाँ, हस्तियाँ, और अना, बीच से जब हटी तब पता ये चला
ये वो राहो-मनाज़िर, वो मंज़िल नहीं, हम कहाँ थे, कहाँ से कहाँ आ गये
वो छेड़ती हैं जो देखती हैं थकी हुई सुर्ख़ लाल अँखियाँ
मगर न सखियाँ ये जानती हैं चुभी हैं आँखों में सेज कलियाँ
ग़ुज़ारी हैं कैसे गिनते गिनते हज़ारो दिन की हज़ार रतियाँ
ज़रा सी आहट पे चौंक उठना सँभालना फिर धड़कती छतियाँ
सुने कभी तो तू हाल मेरा इधर उधर की मुझे सुनाये
न रात देखे, न दिन को जाने, न वक़्त समझे, बनाये बतियाँ
दिवानगी से भरा हुआ दिल न सोचता नासमझ है इतना
बहुत मनाया मगर है ज़िद्दी न माने छाने पिया की गलियाँ
कहाँ गया वो समय कि मिल के रहा करे थे सभी धरम के
ग़ुलाल होली पे सब लगाते थे ईद पर बँटती थी सिवैयाँ
मुझे तो आवाज़ दे बुलाये हसीन बचपन की सारी यादें
कि फोड़ते थे पटाख़े बम जब चलाया करते थे फूलझड़ियाँ