अंक नहीं जीवन का आधार

लेख

लेखिका
नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’

अक्सर देखा गया है कि 10वीं और 12वीं के विद्यार्थियों में परीक्षा परिणाम को लेकर बहुत भय रहता है ।
परीक्षा का परिणाम कैसे होगा ? हमें कितने नंबर मिलेंगे ? हम पास हो पाएँगे या नहीं या हमारे 100% या 95% आएँगे या नहीं और अगर मैं पास नहीं हुआ तो क्या होगा …इत्यादि ? यह इसलिए होता है क्योंकि विद्यार्थी पर घर-परिवार, शिक्षक, स्कूल सभी का दवाब रहता है कि अच्छे अंक लाने हैं और जो पढ़ाई में प्रखर होते हैं उन विद्यार्थियों से यह उम्मीद रहती है कि वह विद्यालय को 100% परिणाम दें । अभिभावकों को भी बच्चे से 100 प्रतिशत नहीं तो 97-98 % अंकों की ख्वाहिश रहती है । इन सब के चलते विद्यार्थी पर इतना दवाब आ जाता है कि वह ध्यान केंद्रीकरण नहीं कर पाता । अगर हम उन बच्चों की बात करें जो 60 % से 70% की श्रेणी वाले होते हैं उनके लिए परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य रहता है ।

100% से 90% वाले विद्यार्थियों के माता-पिता प्रशंसा का पात्र बनते हैं । बच्चों को भी स्पेशल अटेंशन दी जाती है क्योंकि उसने परीक्षा में 90% या100% अंक प्राप्त कर उन्हें गौरवान्वित किया है । माता-पिता स्कूल शिक्षक सभी उसे बधाई देते हैं और प्रशंसा करते हैं और वहाँ जो 60 से 80% अंक लेकर पास हुआ है उनको प्रोत्साहित नहीं किया जाता । माता-पिता भी उसे ऐसी कोई बधाई नहीं देते और न ही माता-पिता किसी की प्रशंसा का पात्र बनते हैं ।
ऐसा क्यों ?
क्या उसके माता पिता ने परीक्षा के समय उस पर ध्यान नहीं दिया ?
क्या शिक्षकों ने उनपर इतनी मेहनत नहीं की ?
क्या विद्यार्थी ने परीक्षा के समय मेहनत नहीं की ?
नहीं शायद नहीं ……
सभी विद्यार्थी अपना 100% देना चाहता है और देता भी है उतनी ही मेहनत विद्यार्थियों के साथ अभिभावक और शिक्षक करते हैं । सहयोग सभी का 100% रहता है । मेहनत सभी बराबर करते हैं । बौद्धिक स्तर के आधार पर विद्यार्थी का मस्तिष्क जितना ग्रहण करता है वह परीक्षा परिणाम के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत हो जाता है । हमें अभिभावक के रूप में , शिक्षक के रूप में सभी विद्यार्थियों को उनकी क्षमता को देखते हुए सभी को समान रुप से प्रोत्साहित करना चाहिए तथा जो विद्यार्थी 50% न लाकर 30 या 40% प्रतिशत अंकों पर भी है उनको भी प्रोत्साहित कर उनका भविष्य के लिए मनोबल बढ़ाना चाहिए जिससे वह किसी गलत मार्ग को ना अपनाकर भविष्य हेतु मार्ग का चयन कर सकें ।
इसी पंक्ति में जो बच्चे परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाते उन्हें भी हतोत्साहित नहीं करना चाहिए क्योंकि अंक किसी का जीवन निर्धारित नहीं कर सकते विद्यालय स्तर पर परीक्षा पास करना और अंक लाना एक औपचारिकता है इससे हमें उन बच्चों का मनोबल कम नहीं करना चाहिए जो उत्तीर्ण नहीं हुए हैं । उन्हें पीछे मुढ़ना नहीं आगे बढ़ना सिखाना है । उन्हें समझाना है कि अभी तो उन्होंने मंजिल पर कदम ही रखा है अभी बहुत सारी मुश्किलें और रुकावटें आएंगी उनका सामना होने दृढ़ता से और संयम के करना है । उन्हें रुकना नहीं आगे बढ़ना सिखाना है क्योंकि एक छोटे कदम से ही मीलों दूर तक का सफर तय किया जाता है और अगर उस छोटे कदम पर ही हार मान ली जाए तो मीलों दूर का सफर कोई भी व्यक्ति नहीं तय कर पाता । उन्हें बताना है कि आगे और भी मुकाम है यह हारने का समय नहीं कुछ कर दिखाने का समय है एक राह में बाधा आई है मगर उनके लिए अनेकों राहें अभी खुली है उन्हें दोबारा प्रयास करना है और मंजिल को पाना है । उन्हें अपनी क्षमता को अंकों के आधार पर नहीं आँकना है । विद्यार्थी देश का भविष्य हैं उनको हर कदम पर हर समय हर रूप में प्रोत्साहित कर आगे का मार्ग दिखाना है न कि हतोत्साहित उनके मार्ग पर प्रश्नचिन्ह ? ? ? लगा कर छोड़ देना है ।

 

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