हास्य कवि डाक्टर वीके मित्तल, दिल्ली की दो चर्चित हज़लें 

मूरख  को चालाक  बताना पड़ता  है 
गदहे   को भी बाप बनाना  पड़ता  है 
जो अगले ही दिन एंटर  बारात करे 
ऐसी मैरिज में भी जाना पड़ता  है
और दिनों तुम कितनी भी डाइटिंग  कर लो 
शादी में तो ठूंस  के खाना पड़ता है
दिल में आता है खुद ही करना बेहतर 
जब नौकर से काम कराना  पड़ता  है 
भर्ती का है रेट  महीने की तनख्वाह
ऊपर भी हिस्सा भिजवाना   पड़ता है 
रिश्वत भी अब पहली जैसी सेफ कहाँ 
कई बार तो जेल भी जाना पड़ता है 
बीवी बोली हर हफ्ते दो फ़ास्ट  करो
रोज़ तुम्हारे लिए बनाना पड़ता  है 

एक अमीर की बेटी  से शादी करके 
पूरी लाइफ नाज़  उठाना  पड़ता है 
कोई साली सलज  नहीं हो क़िस्मत  में 
ऐसी  भी ससुराल  में जाना पड़ता है 
बीवी कैसी निकलेगी  शादी के बाद 
जैसी निकले साथ निभाना  पड़ता है 

क्यूँ पड़ा  शादी का फंदा क्या पता 
क्यूँ मरा फोकट में बंदा क्या पता 
एक कुत्ता गेट  प रख , कब कोई 
मांगने आ जाये चंदा  क्या पता 
याद  रख दिल्ली में ड्राइव कर रहा 
कब कहाँ मुड़ जाये बंदा क्या पता 
नोटबंदी थी या जी एस टी वजह 
क्यूँ हुआ धंधे में मंदा  क्या पता 

हर सुबह दिल्ली की जनता सोचती  
आज क्या कर जाये बंदा क्या पता ..

News Reporter

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