कवयित्री कुसुम शर्मा, जोधपुर की तीन मनोहारी कविताएँ

1.वक्त का इरादा
वैसे तो अपना इरादा है, भला होने का,
पर मजा कुछ और है, दुनियाँ में तन्हा रहने का।
वक्त से पहले ही, पक जाती है, कच्ची उम्र,
मुफलिसी नाम है, बचपन में बडा होने का।।
क्या ज़रूरी है, जो दिल में हो, जुबाँ पर आए,
ये जमाना नहीं है, इतना भी खरा होने का।।
रास आया है, परिंदे को, ये पिंजरा कितना,
ख्वाब तक आता नहीं, अब तो रिहा होने का ।
क्यूं बनाता है वो, मिट्टी के खिलौने आखिर,
जब जज्बा ही नहीं हो दिल में, जिंदा रहने का।।
कुछ तो शिकवा भी है, क्यूं जाम है आधा खाली,
और कुछ शुक्र है, आधा भरा होने का।।
इक अदा करने का जिम्मा, फकत इंसान का क्यूं है,
हक अदा तू भी तो कर, अपने खुदा होने का…

2. वो शख्स

वो शख्श मुझे, अजूबा ही नजर आता है,
कभी बेदर्द तो कभी हमदर्द नजर आता है।।
कभी मिलते हैं उससे, न भरने वाले जख्म,
तो कभी हाथों में उसके, मरहम नजर आता है।
उसकी एक आहट पर भी, कँपकँपी होती है,
तो कभी, सामने होने पर भी, एक शून्य नजर आता है।।
भ्रम के भँवर में, डोल.रही हूं अब भी,
आखिर वो क्या है, और क्या नजर आता है।।
अरसे बाद अंतस ये आभास हुआ,
ना ही वो मसीहा, ना ही वो विराम,
वो तो अपना-सा ही, एक पुरतपाक, ख्वाब नजर आता है।।

3. जाने कौन
मुँह की बात सुने हर कोई,
दिल के दर्द को जाने कौन।
आवाजों के बाजारों में,
खामोशी पहचाने कौन।।
सदियों सदियों वही तमाशा,
रस्ता, रस्ता लम्बी खोज ।
लेकिन जब मिलने का सोचूँँ
आ जाता है लम्बा मौन।।।
जाने क्या क्या बोल रहा था,
प्यार किताबें और जूनून
कल मेरी नींदो में छुपकर,
जाग रहा था जाने कौन।।
मैं उसकी परछांई हूं या
वो है मेरा आईना,
मेरे ही अंदर रहता है,
मेरे जैसा जाने कौन…

News Reporter

3 thoughts on “कवयित्री कुसुम शर्मा, जोधपुर की तीन मनोहारी कविताएँ

  1. एजुकेशन मिरर मे मेरी तीनों कविताएं प
    प्रकाशित करने के लिये चेतन सर आपका हार्दिक आभार। 🙏🙏

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