लेखिका नीरू मोहन की माँ को समर्पित नई कहानी

यह कथा एक सत्य घटना पर आधारित है गोपनीयता बनाए रखने के लिए पात्रों के नाम और जगह बदल दिए गए हैं।

एहसास
’मीना बनारस के एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती है। परिवार में पति मनीष के अलावा सास-ससुर और मीना की दो वर्ष की एक सुंदर-सी बिटिया है। मीना की माता जी का देहांत उसकी बेटी के जन्म के छह माह पश्चात ही हो गया था। मीना अभी तक अपनी माँ के चले जाने के दुख दर्द को नहीं भुला पाई है। ’इसी बीच मीना गर्भवती हो जाती है, मगर घर के झगड़ों के कारण मीना और मनीष अभी दूसरी संतान नहीं चाहते। वह पूरा यत्न करते हैं कि बच्चे का गर्भपात स्वयं ही हो जाए। कहते हैं कि विधि के विधान को कोई नहीं ठुकरा सकता। उसके आगे किसी की भी नहीं चलती। मीना का गर्भपात नहीं होता। मनीष अभी दूसरे बच्चे का खर्चा वहन नहीं कर सकता, पर मनीष की माँ को घर का वारिस चाहिए। माँ मनीष से कहती हैं कि वह खर्चे की चिंता न करे। अपने पोते का सारा खर्चा वह स्वयं वहन करने के लिए तैयार हैं। मनीष को इसकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ’मीना का गर्भ चार महीने का हो गया है। वह अब स्वयं भी नहीं चाहती कि उसका गर्भपात हो। वह बच्चे को जन्म देना चाहती है। लड़का हो या लड़की, मीना को इसकी चिंता नहीं है। मीना का यह मानना है कि बच्चा अपना नसीब लेकर आता है, इसके लिए न तो मनीष और न ही उसकी माँ को कोई चिंता करनी चाहिए। मनीष की माँ मीना की इस अवस्था में भी उससे झगड़ा करती रहती है। रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर मनीष अलग हो जाता है। बहु-बेटे को घर से जाता देखकर मीना की सास उन्हें नहीं रोकती। मीना और मनीष अलग घर लेकर रहने लगते हैं। ऐसी अवस्था में मीना अपने आपको अकेला महसूस करती है। उसको तरह-तरह की चीजें खाने का मन करता है। मनीष मीना का हर तरह से ख्याल रखता है, मगर नौकरी के कारण पूरा दिन घर पर नहीं रह सकता। ’एक दिन मीना घर के कार्यों से निवृत्त होकर अपनी माँ को याद करते-करते सो जाती है। सपने में ही उसे काजू खाने का मन होता है। उसे सपने में ही माँ की बहुत याद आती है। सपने में ही माँ मीना के दिल की बात समझ जाती है और उसे काजू का एक पूरा पैकेट खिलाकर चली जाती है। जब मीना की नींद खुलती है तो माँ को तो अपने समक्ष नहीं पाती मगर उसकी काजू खाने की तृष्णा समाप्त हो जाती है। उसकी माँ सपने में ही उसे इतने सारे काजू खिलाकर चली जाती है कि नौ महीनों तक मीना को काजू खाने का मन ही नहीं होता। उस दिन के बाद जब-जब मीना को कुछ खाने का मन होता है, तब-तब मीना की माँ सपने में मीना को वह सारी चीजें खिलाकर जाती है, जो वह खाना चाहती है। माँ की ममता और उसका मातृत्व ऐसा ही होता है, जो अपने बच्चों के दिल की बात बिना कहे ही समझ जाता है। माँ-बाप बच्चों को तकलीफ में नहीं देख सकत, चाहे वह हों या न हों मगर अपने होने का एहसास दिलाकर बच्चों को मुश्किलों से लड़ने का साहस और ताकत देते हैं।
’मीना ने नौ महीने बाद एक बेटे को जन्म दिया। बेटे का नयन, नक्श, रंग सभी मीना की माँ पर थे और तो और नामकरण के समय उसका नाम भी मीना की माँ के नाम के प्रथम अक्षर से निकला। आज मीना का बेटा सोलह साल का हो गया है। उसके बेटे में वे सारे गुण हैं जो उसकी माँ में थे। वह दयालु है। सब की सहायता करता है। नम्र व्यवहार का है। सबके प्रति दया भाव, ममता, आदर-सत्कार ये सभी गुण उसके बेटे में आए हैं। बिल्कुल मीना की माँ की तरह और मीना का भी ख्याल वह बिल्कुल उसकी माँ की तरह ही रखता है। एक माँ के खोने का दर्द क्या होता है यह सिर्फ वही जान सकता है जिसने अपनी माँ को खोया हो। उस दर्द को सहा हो। मीना आज अपनी माँ के न होने के दुख से धीरे-धीरे पार उतर रही है क्योंकि मीना को आज ऐसा एहसास होता है कि उसके बेटे के रूप में उसकी माँ उसके पास हमेशा विद्यमान है। माँ ऐसी ही होती है जो न होते हुए भी अपने बच्चों की दिल की धड़कन तो क्या उस धड़कन से निकलने वाली आवाज भी सुन लेती है।

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