कवि कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’ दौसा, राजस्थान की मर्मस्पर्शी रचना ‘माँ’ आपके मन को झंकृत कर देगी-

माँ ज़िंदगी की प्रथम पाठशाला है।
माँ संसार की अनुपम कृति है।
माँ सात स्वरों का संगम है।
माँ नूर नहीं कोहिनूर है।
माँ प्रेम से भरपूर है।
माँ खुदा का दूजा रूप है।
माँ प्यार भरा एक कूप है।
माँ ममता का एक सागर है।
माँ भक्ति की एक गागर है।
माँ के बिन सृष्टि अधूरी है।
माँ से सब इच्छा पूरी है।
माँ तन-मन और धन है।
माँ पर जीवन ही अर्पण है।
माँ अधरों की प्यास है।
माँ से सबको ही आस है।
माँ घुंघरू की झंकार है।
माँ वीणा की झंकार है।
माँ वंशी की मीठी तान है।
माँ गुरुदेव का ज्ञान है।
माँ ईश्वर का वरदान है।
माँ आन, बान और शान है।
माँ फूलों का मकरंद है।
माँ गीत, गजल और छंद है।
माँ जग की प्रेम कहानी है।
माँ के बिन दुनिया वीरानी है।
माँ की महिमा का अंत नहीं।
माँ उजड़ा हुआ बसंत नहीं।
माँ मीरा जैसी भक्ति है।
माँ दुर्गा जैसी शक्ति है।
माँ गीता और कुरान है।
माँ वेद और पुराण है।
माँ गंगा का ही रूप है।
माँ सृष्टि का ही स्वरूप है।।

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1 thought on “कवि कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’ दौसा, राजस्थान की मर्मस्पर्शी रचना ‘माँ’ आपके मन को झंकृत कर देगी-

  1. बहुत बहुत आभार आपका चेतन जी

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